‘संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण’ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया नोटिस

 नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण विधेयक को फिर से पेश करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है। इसके बाद याचिका के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। यह तब हुआ जब नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण पेश हुए।

दरअसल, संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। जस्टिस संजीव खन्ना और जेके महेश्वरी की पीठ ने कहा कि यह मामला महत्वपूर्ण है। याचिका नेशनल फेडरेशन आफ वूमन ने दायर की है। याचिकाकर्ता ने कहा कि महिलाओं के आरक्षण के लिए 25 वर्ष पूर्व महिला आरक्षण बिल 2008 में लाया गया था।

यह भी तर्क दिया गया कि यह राज्यसभा में पारित हो गया था लेकिन इसे लोकसभा में नहीं रखा जा सका, क्योंकि उसका कार्यकाल समाप्त हो गया था। असल में याचिका में यह भी कहा गया है कि विधेयक 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा के विघटन के बाद समाप्त हो गया था, इसे लोकसभा के समक्ष नहीं रखा गया था, भले ही इसे राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बिल को दोबारा पेश नहीं करना मनमाना है। आगे यह भी कहा गया कि यह भेदभाव की ओर ले जा रहा है। विधेयक को 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था ताकि इसके उद्देश्यों और लक्ष्यों को पूरा किया जा सके। यह निवेदन किया जाता है कि इस तरह के एक महत्वपूर्ण और लाभकारी विधेयक, जिस पर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की एक आभासी सहमति है, को पेश न करना मनमाना है।

हाल ही में संसद के मानसून सत्र 2021 में 20 फीसदी बिल पारित किए गए थे। आजादी के 75वें साल में महिलाओं की स्थिति नही बदली है, जबकि उनकी संख्या 50 फीसदी है, लेकिन उनका संसद में प्रतिनिधित्व 14 फीसदी है। इस बिला का भाजपा, कांग्रेस, डीएमके, सपा, अकाली दल, सीपीएम, एनसीपी और एआईडीएमके ने समर्थन किया था।