सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने को केसरी से लिया गया था जबरन इस्तीफा

नई दिल्ली
सियासी इतिहास को लंबे समय तक याद रखा जाता है। राजनेताओं का यह बार-बार पीछा करती है। कांग्रेस और गांधी-नेहरू परिवार का भी इतिहास लगातार पीछा करती है, जो कि हॉलीवुड की फिल्में 'हाउस ऑफ कार्ड्स' और 'गेम ऑफ थ्रोन्स' की कहानियों से मेल खाती है। हाल ही में जब कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में एक गैर गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष मिला तो इस परिवार के इतिहास पर लोगों की नजरें जा टिकीं। लोग कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी को याद करने लगे, जिन्होंने सोनिया गांधी के आलोचक और देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का स्थान लिया था।

सोनिया गांधी, जिनका आज जन्मदिन है, और नरसिम्हा राव के संबंध इस कदर खराब थे कि उन्हें दिल्ली में अंतिम संस्कार के लिए जगह तक नहीं दी गई थी। उनके शव को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर भी नहीं जाने दिया गया था। बाद में सीताराम केसरी को भी सोनिया गांधी के द्वारा पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

नरसिम्हा राव से खराब थी केसरी की विदाई
सीताराम केसरी की विदाई नरसिम्हा राव से भी खराब रही थी। अनुभवी गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी सीताराम केसरी को 12वीं लोकसभा के चुनाव के बाद सोनिया गांधी के वफादारों ने सचमुच सड़क पर फेंक दिया था। आपको बता दें कि इस चुनाव में सोनिया गांधी द्वारा 130 से अधिक रैलियों को संबोधित किया गया था। इसके बावजूद कांग्रेस 142 सीटों पर सिमट गई। उत्तर प्रदेश में अमेठी के अपने पारंपरिक गढ़ को भी खो दिया।

वफादारों ने तैयार की सोनिया की सियासी जमीन
अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी जैसे दिग्गजों का भी बुरा हाल हुआ। कांग्रेस के भीतर एक गुट ने हार के लिए केसरी को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि इस चुनाव में केसरी ने एक भी जनसभा को संबोधित नहीं किया था। तर्क यह दिया गया कि 'केसरी के कमजोर नेतृत्व के कारण सोनिया गांधी के करिश्मे का फायदा कांग्रेस ने खो गया।' दरअसल, कांग्रेस के भीतर वफादार नेताओं द्वारा सोनिया गांधी की सियासी चढ़ाई के लिए जमीन तैयार की जा रही थी।

वफादारों ने आरोप लगाया कि सीतारम केसरी दक्षिण भारत के नेताओं के साथ बातचीत करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती है। उन्हें सवर्ण विरोधी भी करार दिया। केसरी ओबीसी जाति से आते थे। उनपर  मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव जैसे समाजवादियों के साथ शामिल होने की साजिश करने का आरोप लगाया गया।

सीताराम केसरी से लिया गया जबरन इस्तीफा
दीवार पर लिखी इबारत को भांपते हुए सीताराम केसरी ने 9 मार्च, 1998 को इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने तुरंत यू-टर्न लिया और इसे वापस ले लिया। उनिहोंने एआईसीसी के खुले सत्र में और अपनी पसंद के दिन इस पद को छोड़ने का फैसला किया। लेकिन, 14 मार्च 1998 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक 24, अकबर रोड पर हुई। केसरी भी इस बैठक में शामिल हुए। वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि पहले ही उनकी पीठ में छुरा घोंपा जा चुका है। सोनिया गांधी के समर्थकों की टोली ने पहले प्रणब मुखर्जी के आवास पर एक बैठक की थी। उन्होंने दो प्रस्तावों को पेश करने का फैसला किया था। पहला सीताराम केसरी को हटाने का और दूसरा सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का।

सीताराम केसरी को कुछ ही देर में हकीकत का पता चल गया। बैठक में सिर्फ तारिक अनवर ही उनका अभिवादन करने के लिए खड़े हुए। प्रणब मुखर्जी ने पार्टी के लिए उनकी सेवा के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। इसके बाद केसरी बैठक से बाहर चले गए। तारिक अनवर ने उनके कमरे तक उनका पीछा किया। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नेताओं का एक समूह उन्हें मनाने के लिए गया, लेकिन उन्होंने वापस आने से इनकार कर दिया। यह भी कहा जाता है कि केसरी ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। इसके बाद उस कमरे को खुलवाकर केसरी से जबरन इस्तीफा वाले कागज पर हस्ताक्षर कराया गया था।

NSUI के कार्यकर्ताओं ने की थी धोती खींचने की कोशिश
सोनिया गांधी कांग्रेस मुख्यालय पहुंचीं। जब सीताराम केसरी जाने के लिए अपनी कार में बैठ रहे थे, तो यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उनकी धोती खींचने की भी कोशिश की। जब तक वे 24 अकबर रोड से बाहर निकले उनकी नेमप्लेट को फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया था। उसकी जगह एक नया प्रिंटआउट लगा दिया गया, जिस पर लिखा था: 'कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी'।

 

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