शोध: फुटबॉल खिलाड़ियों को डिमेंशिया का अधिक खतरा

नई दिल्ली

एक नए अध्ययन के मुताबिक फुटबॉल खिलाड़ियों को अल्जाइमर रोग और अन्य प्रकार के मनोभ्रंश का खतरा अधिक होता है. हालांकि, गोलकीपरों को इस तरह के तंत्रिका संबंधी विकारों के प्रति कुछ हद तक प्रतिरक्षित दिखाया गया है. मेडिकल जर्नल द लांसेट में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक सामान्य आबादी की तुलना में बड़ी प्रतियोगिताओं या टीमों में खेलने वाले फुटबॉल खिलाड़ियों में डिमेंशिया विकसित होने की संभावना अधिक होती है.
 

डिमेंशिया एक ऐसी बीमारी है जिससे याददाश्त लगभग खत्म हो जाती है. डिमेंशिया के शुरुआती चरण भूलने की बीमारी से शुरू होते हैं, व्यक्ति समय का क्रम भूलने लगता है और परिचित जगहों को याद नहीं रख पाता है. चिंता और अवसाद भी शुरुआती संकेत के रूप में काम कर सकते हैं, खासकर युवा रोगियों के लिए. इस नए शोध का विवरण मेडिकल जर्नल द लांसेट में प्रकाशित हुआ है. इसने 1924 और 2019 के बीच 56,000 से अधिक फुटबॉल के अलावा अन्य खेलों के खिलाड़ियों के साथ 6,000 से अधिक शीर्ष-स्तरीय स्वीडिश पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों के मेडिकल रिकॉर्ड की तुलना की.

स्वीडन में कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पाया कि फुटबॉलरों को नियंत्रण समूह की तुलना में अल्जाइमर रोग और अन्य प्रकार के मनोभ्रंश विकसित होने की संभावना डेढ़ गुना अधिक थी. कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के पेटर उएडा ने इस शोध का नेतृत्व किया. उनका कहना है कि यह दर्शाता है कि बड़े पुरुष खिलाड़ी डिमेंशियाविकसित करने के "महत्वपूर्ण जोखिम" पर हैं. इस अध्ययन के मुताबिक क्योंकि गोलकीपरों को शायद ही कभी गेंद को सिर से मारने की आवश्यकता होती है, वे इसके प्रति प्रतिरक्षित हैं.

"गोलकीपर को खतरा कम"
पेटर उएडा ने कहा, "एक परिकल्पना यह है कि बार-बार बॉल को सिर से मारना खिलाड़ियों को अधिक जोखिम में डालते हैं और मैदान पर गोलकीपरों और खिलाड़ियों के बीच के अंतर को देखते हुए इस सिद्धांत का समर्थन करता है." यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के मनोरोग प्रोफेसर गिल लिविंगस्टन ने कहा, "उच्च गुणवत्ता वाले शोध" ने "ठोस सबूत" जोड़े हैं कि जिन फुटबॉलरों के सिर गेंद के संपर्क में ज्यादा आते हैं उनमें डिमेंशिया का खतरा अधिक होता है.

लिविंगस्टन भी अनुसंधान में शामिल थे. उन्होंने कहा, "हमें लोगों के सिर और दिमाग की रक्षा के लिए काम करते हुए खेलते रहने की जरूरत है." अध्ययन में एएलएस जैसे मोटर न्यूरॉन रोगों का कोई बढ़ा हुआ जोखिम नहीं पाया गया और फुटबॉलरों में पार्किंसंस रोग का जोखिम भी कम पाया गया. हालांकि पेटर उएडा ने आगाह किया कि अवलोकन संबंधी अध्ययन यह दिखाने में सक्षम नहीं है कि फुटबॉल खेलने से सीधे तौर पर डिमेंशिया होता है और इसके निष्कर्षों को महिला, शौकिया या युवा फुटबॉल खिलाड़ियों पर लागू नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, "खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए और अधिक उपाय किए जाने के लिए अब अधिक से अधिक आवाजें उठ रही हैं और हमारा शोध ऐसे जोखिमों को सीमित करने में निर्णायक रूप से मदद कर सकता है."
 
सिर में चोट का विवाद
हाल के वर्षों में खेल के दौरान सिर की चोटों और खेल करियर के अंत के बाद उनके दुष्प्रभावों पर बहुत शोध हुआ है. विशेष रूप से रग्बी और अमेरिकी फुटबॉल पर काफी शोध किया गया है. पिछले साल ग्लासगो विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक अध्ययन में पाया गया कि पूर्व रग्बी खिलाड़ियों में सामान्य आबादी की तुलना में मोटर न्यूरॉन रोग विकसित होने की संभावना 15 गुना अधिक थी. नेशनल फुटबॉल लीग के 111 मृत पूर्व खिलाड़ियों के 2017 के बॉस्टन विश्वविद्यालय के अध्ययन में जिन्होंने अपना दिमाग दान किया था, उनमें क्रोनिक ट्रॉमैटिक एन्सेफैलोपैथी (सीटीई) जैसी बीमारियों के सबूत थे. सीटीई सिर की कई चोटों के बाद विकसित होता है और व्यवहारिक परिवर्तनों के साथ दीर्घकालिक डिमेंशिया का कारण बन सकता है.